Migrain / Hemicrania –
आधाशीशी / सरदर्द
आयुर्वेदमे इसे अर्धावभेदक
कहा जाता है ।
रुक्ष – रुखासुखा भोजन करना, भोजनके उपर फिरसे भोजन करना, सामनेसे आनेवाले वायुका सेवन ( उदा. गाड़ी मे खिडकीमे बैठ़्नेपर लगनेवाली जोरकी हवा) , अतिपरिश्रम, अतिव्यायाम जैसे कारनोंसे बढ़ा हुअ वात दोष अकेला या कफके साथ सिरके आधे भागमे जाकर शस्त्रसे काटे जानेजैसी, अग्निसे चटका लगनेजैसी तीव्र वेदना निर्माण करता है । इसे अर्धावभेदक कहते है । ये अगर जादा बढ़ जाता है तो कर्ण और नेत्र का नाश कर सकता है । ये सिरदर्द दस दिन, पंधरा दिन या एक महिनेमे बारबार शुरु हो जाता है । और थोडी देरबाद अपनेआप कमभी हो जाया करता है । ये व्याधी वृध्दोंके बजाय जवानोंमे और बालकोंमे जादा दिखाई देता है । मानसिक चिंता, अधिक परिश्रम, भोजनमे अनियमितता, वंशपरंपरा आदिभी इसके कारन है । आधुनिक वैद्यकशास्त्रके अनुसार इसे Migrain / Hemicrania कहा जाता है । इसके बारबार वेग आते रहते है । |
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